निर्भया का आक्रोश
Obituary on Nirbhaya

श्रद्धांजलि अर्पण करने आज
हाथ फिर क्यों कापते हैं
आखों में भर गये आसूं
बहने भी क्यों शरमाते है ।
घसीट लाये रास्ते पर तुझे
नजरें भीष्म फिर झुक गयी
द्रौपदी तो भाग्यवती थी
क्रुष्णलीला क्यों आज रुक गयी
दशदिशा भेेद आक्रोश तुम्हारा
सुन कालभैरव भी तो हिल गये
विश्वास के सारे ही अर्थ
एक रात में ही बदल गये ।
छाती फोड़ उन नराधमों की
लहू पीने का भी मन नहीं है
जिस छाती में ह्रदय ही नही
वो अधम तो नर भी नहीं है ।
संवेदना ही जो मर गयी तो
क्या संसार क्या है शमशान
स्रुष्टि बनती जब अशांत तो
कैसे करु पिंड का भी दान
प्रतिदिन जन्म लेती तुम
प्रतिदिन बनती हवस की शिकार
मुक्ति तुझे मांगू भी कैसे
बेकाबू रहे जब त्रुष्णा विकार
जीवन की बने तू ज्योति
तब ही कर पाऊं नमन
उस ज्योति की बने तू ज्वाला
तब ही होगा शांति हवन
तमसो मा ज्योतिर्गमय