सबका साथ सबका विकास
फिर क्यों है निसर्ग ही का विनाश
निसर्ग हमारा नही हम है उसके अंश
पंचतत्व से बना शरीर यही जीवन सारांश
सारी प्रजातियां क्यों करे हम निर्वंश
सहजीवन नष्ट हो प्रुथ्वी हो हताश ।
गिरता जलस्तर प्रदूषित आसमान
तप्त धरती बदल रहा है हवामान
सागर भी करे मर्यादा का उल्लंघन
इशारों को करते हम नजर अंदाज
नष्ट उद्यान नष्ट करते वन उपवन
ना आरक्षित भूख॔ड न हो मैदान
जल ऑक्सिजन के लिए तडपता जीवन
कैसे पाए सृष्टि का आशिष हम आज
प्रकल्पाधारित योजना न हो हो समग्र विचार
आसान नही फिर भी करो आव्हान स्वीकार
स्रुजन तोही है बुद्धी का सही आविष्कार
पुनर्निर्माण योजना का हो आज परिस स्पर्श
यावर आपले मत नोंदवा