याद न रही कुर्बानी:-

ए मेरे वतन के लोगों
जरा आँख में भर लो पानी
पिता शहीद हुए उनकी
याद नही रही कुर्बानी ।
घायल हुआ कश्मीर जब
नारे लगे झूठी आजादी
कँपस में घुस घुसकर
चाहते भारत की बरबादी
बिभत्स है यह भाषा
अभद्र है यह वानी ।
छुपे वार प्हारों से
खेलते ये खून की होली
पत्थरबाजों के पीछे से
चलाते आतंकी गोली
बौछारों के बीच मे से
लडते है वीर तूफानी ॥
जब अंत समय आया तो
कह गये हम मरते है
खूष रहना मेरी बेटी
हम तो सफर करते है
बेटी न समझ पायी ये
शांति के लिए युद्ध है जरुरी
भावविवश युवती के शब्दों को
छिनते है माता के हत्यारी
पत्रकारों न ढूंढो इसमें
कोई काल्पनिक कहानी
शरम करो मीडियावालो
बनो थोडे अभिमानी ॥:-