स्वार्थ लोभ मोह मत्सर
क्षुद्र भाव अति अहंकार
साथ है आतंक असुर
निकल पडे देश के गद्दार
होगा शिवताण्डव फिर एक बार ।
जवानों पर फेके ये पत्थर
आतंकियों के समर्थक निरंतर
जन्मभूमि जननी के सौदागर
फैलने चले पुनश्च अंधकार
होगा शिवताण्डव फिर एक बार ।
जात पात के ही जाने समीकरण
भ्रष्टाचार से लिप्त सारा जीवन
बदलाव देखकर हो ये बेचैन
करने चले जनतंत्र पर ही प्रहार
होगा शिवताण्डव फिर एक बार ।
आओ दुष्टशक्तिऔं साथ मिलकर
करो सरल या छुपे जितने वार
उतना ही बढे निश्चय निर्धार
करने आपका एकसाथ संहार
होगा शिवताणडव फिर एक बार
गद्दारों की न होगी वापसी
रानी अब न देगी झांसी
भारतमाता न बनेगी दासी
पद्मावती न करेगी कभी जोहर
होगा शिवताण्डव फिर एक बार
छू भी न सके शिवधनुष जो तुम
टूटेगा अब गर्जना हो भयंकर
धरती कन्याओं का पुन: स्वयंवर
मुक्त धरणी मुक्त हो अंबर
गूंज उठेगी विश्व गगन में
माता की ही जयजयकार
होगा शिवताण्डव फिर एक बार
यावर आपले मत नोंदवा