संन्यास संसार त्याग नही
ना है यह रण से पलायन
मोह माया बंध मुक्त मन
कर्तव्य का करे कठोर पालन
शस्त्र संन्यास लिया क्रुष्ण ने
पार्थ की बन कर प्रेरणा
अग्निप्रतिज्ञा चाणक्य की भी
चंद्रगुप्त की बन गयी चेतना
धनुर्धर राम का दास जो
विजय की ही करे कामना
विवेक में आनंद जिसका
समाज में लाये नव संवेदना ।
वनवास हो या राजयोग
योगी माने केवल संयोग
राह पर चलता है अविचल
बनाता है भविष्य उज्ज्वल ।
यावर आपले मत नोंदवा