विविधता को आज बहुत खतरे है
बुद्धिजीवियों के गंभीर इशारे है
पुरस्कार वापसी में जब हारे है
अब झूठी आजादी के नारे है ।
पीडा अत्याचार न देख सके
ये ध्रुतराष्ट्र जैसे अंधे है
विविधता का अर्थ ही न समझे
अपने ही तर्कों से बंधे है ।
विविधता कोई विभाजन नही
ना समाज में टकराव है
एक माला से बंधे अनेक मोती
फूटे शीशों का न ये बिखराव है ।
विविधता से है सदियों से परिचय
विविधता है प्रतिभा का संचय
स्रुष्टि का वह गुणगान है
भारत मां का यह वरदान है ।
यावर आपले मत नोंदवा